पिछले महीने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के दौरे पर गए थे. यूक्रेन में रूसी हमले के बाद पीएम मोदी का यह पहला रूस दौरा था.
मॉस्को पहुँचते ही पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन एक दूसरे से गले मिले, तो पश्चिम के मीडिया में इसकी जमकर आलोचना हुई.
पुतिन और मोदी का गले मिलना यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को रास नहीं आया था.
ज़ेलेंस्की ने नौ जुलाई 2024 को इस पर आपत्ति जताते हुए कहा था, ''आज रूस के मिसाइल हमले में 37 लोग मारे गए, इसमें तीन बच्चे भी शामिल थे. रूस ने यूक्रेन में बच्चों के सबसे बड़े अस्पताल पर हमला किया. एक ऐसे दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का दुनिया के सबसे ख़ूनी अपराधी से मॉस्को में गले लगाना शांति स्थापित करने की कोशिशों के लिए बड़ी निराशा की बात है.''
इस बात को क़रीब डेढ़ महीने हो रहे हैं और अब पीएम मोदी यूक्रेन के दौरे पर जा रहे हैं.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 अगस्त को यूक्रेन के दौरे पर रहेंगे. 30 साल में ये पहली बार है, जब कोई भारतीय पीएम यूक्रेन का दौरा करेगा.
कई लोग मानते हैं कि पीएम मोदी का यूक्रेन दौरा रूस को असहज कर सकता है, लेकिन एक राय ये भी है कि राष्ट्रपति पुतिन के चीन दौरे से भी भारत बहुत सहज नहीं रहता है.
पीएम मोदी का ये दौरा ऐसे वक़्त में हो रहा है, जब यूक्रेन ने बीते दिनों रूस की सीमा में घुसकर हमले तेज़ किए हैं.
यूक्रेन ने रूस के कुछ इलाक़ों को अपने नियंत्रण में भी ले लिया है. आशंका जताई जा रही है कि रूस यूक्रेन पर जल्द बड़ा हमला कर सकता है.
ऐसे में पीएम मोदी के यूक्रेन जाने के वक़्त पर चर्चा हो रही है और सवाल पूछा जा रहा है कि पीएम मोदी ऐसे वक़्त पर यूक्रेन क्यों जा रहे हैं, जब हालात काफ़ी बिगड़े हुए हैं?
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अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार ब्रह्म चेलानी ने ट्वीट कर कहा, ''23 अगस्त को यूक्रेन दौरे पर जाना न सिर्फ़ ख़राब समय है बल्कि इसका मक़सद भी साफ़ नहीं है. यूक्रेन के हालिया आक्रमण ने युद्धविराम की कोशिशों को झटका पहुंचाया है. यूक्रेन के आज़ाद होने के बाद कोई भारतीय पीएम वहां नहीं गया है. पीएम मोदी के यूक्रेन जाने की कोई ठोस वजह नहीं है. ख़ासकर तब जब युद्ध के कारण तनाव बढ़ा हुआ है.''
अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार प्रवीण सावहने ने लिखा, ''जब रूसी सेनाओं की ओर से यूक्रेन के डोनबास में कई मोर्चों पर आक्रमण तेज़ हुए हैं, तब पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे का मक़सद क्या है?''
जेएनयू में प्रोफ़ेसर हैप्पीमन जैकब ने लिखा- पीएम मोदी यूक्रेन के दौरे पर क्यों जा रहे हैं?
जवाब में प्रोफ़ेसर जैकब ने विदेश मंत्री एस जयशंकर की किताब 'द इंडिया वे' का एक अंश साझा किया है.
इस अंश के मुताबिक़, ''उभरती हुई शक्तियां वैश्विक विरोधाभासों के कारण पैदा हुए अवसरों को पहचानती हैं और उन्हें इस्तेमाल करते हुए अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाती हैं.''
फ़रवरी 2022 से शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से पीएम मोदी और ज़ेलेंस्की दो बार मिल चुके हैं.
मई 2023 में मोदी और ज़ेलेंस्की के बीच जापान में मुलाक़ात हुई थी. जून 2024 में दोनों नेता इटली में भी मिले थे.
रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने लिखा है, ''इस समय मोदी की यूक्रेन यात्रा काफ़ी बुरी साबित हो सकती है. यूक्रेन की घुसपैठ के बाद रूस उस पर बड़े हमले की तैयारी कर रहा है. अमेरिका की यहाँ युद्ध विराम में कोई दिलचस्पी नहीं है.''
ब्रह्म चेलानी ने बांग्लादेश का ज़िक्र करते हुए मोदी से भारत के लिए मौजूद चुनौतियों पर ध्यान देने की सलाह दी है.
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भारत और यूक्रेन ने मोदी के दौरे पर क्या कहा?
पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे के बारे में भारत और यूक्रेन के विदेश मंत्रालयों की ओर से जानकारी दी गई है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के सचिव (पश्चिम) तन्मय लाल से प्रेस वार्ता के दौरान ये पूछा गया कि क्या पीएम मोदी के रूस दौरे के बाद पश्चिमी देशों से हुई आलोचना के कारण यूक्रेन का दौरा किया जा रहा है?
तन्मय लाल ने जवाब दिया, ''भारत के रूस, यूक्रेन से मज़बूत और स्वतंत्र संबंध हैं, जिनका अपना-अपना अस्तित्व है. ये किसी एक का फ़ायदा, दूसरे का नुक़सान जैसा मामला नहीं है. पीएम मोदी रूस दौरे पर गए थे. कई मुद्दों पर बात हुई थी. फिर पीएम ने ज़ेलेंस्की से भी कई मौक़ों पर मुलाक़ात की है. अब दोनों नेता यूक्रेन में मिल रहे हैं. अभी जारी संघर्ष के बारे में भी बात होगी.''
रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख़ के बारे में तन्मय लाल ने कहा, ''भारत ने बहुत स्पष्ट स्थिति बनाई हुई है. कूटनीति और बातचीत से इस संघर्ष को सुलझाया जा सकता है. इससे स्थायी शांति स्थापित हो सकती है, इसलिए बातचीत बहुत ज़रूरी है."
तन्मय लाल ने कहा, "स्थायी शांति केवल उन विकल्पों के माध्यम से हासिल की जा सकती है, जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हों. इसका समाधान केवल बातचीत से ही हो सकता है."
यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की के कार्यालय की ओर से भी पीएम मोदी के दौरे के बारे में जानकारी दी गई है.
बयान के मुताबिक़, 23 अगस्त को यूक्रेन के फ़्लैग डे के मौक़े पर भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी यूक्रेन के आधिकारिक दौरे पर आएंगे. द्विपक्षीय संबंधों के इतिहास में ये किसी भारतीय पीएम का पहला दौरा होगा.
इस यात्रा के दौरान द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग पर बात की जाएगी. भारत और यूक्रेन के बीच कई दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किए जाने की उम्मीद है.
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भारत और यूक्रेन के संबंध
बीते 25 सालों में भारत और यूक्रेन के व्यापारिक संबंधों में इजाफा देखने को मिला है.
भारत के विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़, 2021-22 वित्तीय वर्ष में दोनों देशों के बीच 3.3 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था.
वहीं रूस और भारत के बीच क़रीब 60 अरब डॉलर का व्यापार हुआ.
साल 2030 तक भारत-रूस के बीच 100 अरब डॉलर का कारोबार होने की उम्मीद जताई जा रही है. रूस के साथ भारत का व्यापार यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद बढ़ा है.
भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले की कभी निंदा नहीं की और न ही संयुक्त राष्ट्र में रूस के ख़िलाफ़ लाए गए प्रस्तावों का समर्थन किया है. लेकिन भारत यूक्रेन में मानवीय मदद पहुँचाता रहा है. .
तन्मय लाल ने कहा- मदद के तौर पर क़रीब 135 टन सामान यूक्रेन भेजे गए हैं.
इनमें दवाएं, कंबल, टेंट, मेडिकल उपकरण से लेकर जनरेटर तक शामिल हैं.
रूस यूक्रेन के बीच जब युद्ध शुरू हुआ था, तब वहां भारतीय छात्र भी फँस गए थे. इन छात्रों की संख्या क़रीब चार हज़ार थी.
इन छात्रों को निकालने में पोलैंड ने अहम भूमिका अदा की थी. पीएम मोदी यूक्रेन दौरे से पहले पोलैंड दौरे पर भी जा रहे हैं. 40 साल में पीएम मोदी पोलैंड जाने वाले पहले भारतीय पीएम हैं.
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यूक्रेन, रूस के मुद्दे पर भारत
2023 में जब भारत में जी-20 सम्मेलन हुआ था, तब भारत ने दबाव के बावजूद यूक्रेन को नहीं बुलाया था. इस सम्मेलन में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी शामिल नहीं हुए थे.
वहीं पश्चिमी देशों में जितने भी बड़े सम्मेलन हुए, ज़्यादातर में ज़ेलेंस्की शामिल हुए थे.
अक्तूबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन के चार नए इलाक़ों पर रूस के कब्ज़े और वहां जनमत संग्रह के ख़िलाफ़ निंदा प्रस्ताव पेश हुआ था. तब इस प्रस्ताव से भारत ने दूरी बनाई थी.
जुलाई 2024 में भी संयुक्त राष्ट्र में रूस से युद्ध रोकने से संबंधित एक प्रस्ताव पर वोटिंग हुई थी, तब भी भारत इस वोटिंग से दूर रहा था.
फरवरी 2022 से अब तक ऐसे कई मौक़े रहे हैं, जब रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव से भारत ने दूरी बरती थी.
पश्चिमी देशों के विरोध और प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा था. ऐसा करके भारत ने रूस से सस्ता तेल हासिल किया.
भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर कई मौक़ों पर अपने इस फै़सले को सही ठहराते रहे हैं.
दिल्ली में आयोजित जी-20 सम्मेलन के साझा बयान में भी रूस को लेकर जैसी भाषा इस्तेमाल की गई थी, उससे रूस, चीन भी सहमत दिखे और पश्चिमी देश भी.
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क्या भारत रूस और यूक्रेन को एक साथ साध सकता है?
भारत के रूस से ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. भारत रक्षा ज़रूरतों के मामले में रूस पर लंबे समय से निर्भर रहा है.
भारतीय विदेश मंत्रालय रूस को भारत का दीर्घकालिक और समय की कसौटियों पर खरा उतरने वाला साझेदार बताता रहा है.
इतिहास की कई तारीख़ें इसकी गवाह भी रही हैं.
सोवियत यूनियन ने 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध ख़त्म कराने में मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी. 1971 में पाकिस्तान के साथ भारत की जंग हुई तो सोवियत यूनियन ने संयुक्त राष्ट्र में भारत के समर्थन में वीटो का इस्तेमाल किया था.
भारत और सोवियत यूनियन के बीच 1971 में पीस, फ़्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन ट्रीटी हुई थी. जब सोवियत संघ का पतन हुआ तो जनवरी 1993 में यह संधि इंडो-रशियन फ्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन ट्रीटी में बदल गई थी.
यूक्रेन से इतर अतीत में कई ऐसे मौक़े रहे हैं, जब भारत सोवियत यूनियन के आक्रमण पर खामोशी बरतता रहा है. फिर चाहे 1956 में हंगरी हो या 1968 में चेकोस्लोवाकिया या फिर 1979 में अफ़ग़ानिस्तान.
यूक्रेन के मामले में भारत का रुख़ अलग नहीं रहा है.
भारत रूस और यूक्रेन युद्ध में किसी एक तरफ़ नहीं दिखता है. एक तरफ़ भारत रूस से संबंध बनाए रखता है, दूसरी तरफ वो यूक्रेन की मदद भी जारी रखता है.
फ़रवरी 2022 के बाद से पीएम मोदी ज़ेलेंस्की से मुलाकात करते रहे हैं.
रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिका की अगुवाई में पश्चिमी देश यूक्रेन के साथ हैं. इन देशों को बाक़ी देशों से भी यही उम्मीद है. मगर बीते ढाई साल में भारत इस बात के दबाव में नहीं दिखा है.
युद्ध के दौरान भारत रूस के बीच बढ़ा कारोबार इसका गवाह है.
प्रोफ़ेसर जैकब ने एक लेख में कहा था, ''आक्रामक रूस अमेरिका और पश्चिमी देशों की समस्या है न कि भारत की. नेटो का विस्तार रूस की समस्या है न कि भारत की. भारत की समस्या चीन है और इस समस्या से निपटने के लिए भारत को अमेरिका, रूस और पश्चिमी देशों की ज़रूरत होगी.''
यानी भारत अपने हितों के हिसाब से यूक्रेन हो या रूस संबंधों को आगे बढ़ा रहा है.
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बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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